Thursday, 1 August 2013

क्या यह आस्था है ??

चाहे कुछ हो  जाये लोग नही समझेंगे कि आस्था मन से होती है ,शोर से नहीं ,दिखावे से नहीं
अभी हरिद्वार में कावर यात्रा चल रहा है ,हरिद्वार से जल लेकर जाने वाले कावरियों को देखकर नहीं लगता कि डेढ़ महीने पहले कितना बड़ा विध्वंस हुआ कितने लोग मरे ,और कितनो कि जिंदगी जीने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा
          गाजा बाजा ,डीजे ,नाच ,अंग्रेजी गीत ,साज  सज्जा आवाज इतना कि अगर किसी मृत आदमी को भी सडक  पर ला खङा किया जाये तो उसका भी दिल धड़कने लगे  | जहाँ इन्होने विश्राम किया सारा गन्दगी पोलिथिन फैलाते चले गए ,सडको पर पानी के ग्लास फेकते  जा रहे है |केले कि छिलके जहा खोजिये वही मिलेगा ,और कहते है हम पूजा करते है | उर्जा और पैसो का ऐसा बेहूदा प्रयोग देखकर आपको अपने और इन लोगो पर निश्चय ही रोना आ जायेगा |आपको अपने पर इसलिए कि आप इन्हें समझा न  सके  और  ये   कि कभी समझ न  सके |
      शायद जो पैसे धुआँ में उड़ रहे है ,जो पैसे आवाज बनकर लोगों को बहरा बना रहे है ,जो शक्ति यूँही लोग दौड़ कर नष्ट कर रहें है, उनकी जरुरत  उत्तराखंड को है ,यहाँ के लोगों को है ,पैसो कि जरुरत यहाँ के पेङो को है ,उस शक्ति कि जरुरत यहाँ के पहाड़ों को है  | पैसो कि जरुरत गंगा को है ,उन पैसो कि जरुरत उन संस्थाओ को है जो इन पहाड़ों पर सड़क बनाने पर अनुसन्धान करते है |पैसो कि जरुरत उनको है जो उड़न खटोला बनाकर लोगों को बचाते हैं |और पैसो कि जरुरत यहाँ के संस्थाओ को है जो बच्चो को जज्बाती बनाते है ,वैज्ञानिक बनाते है ,|
           मै तो भगवन से नहीं मिला लेकिन मान्यताओ से तो साफ प्रतीत होता है कि भगवान को प्रदुषण से नफरत है ,चाहे कोई भगवन क्यों ना हो ||

           हम भी जानते है आप भी जानते है कि जो गंगा जल लोग कितनी आस्था से ,कितने विश्वास से लेकर चलते है ,वो गन्दा जल है ,मल मूत्र और रसायनों से भरपूर |क्या भगवान इस गंदे जल को अपने ऊपर पाकर प्रसन्न होंगे ?मुझे नहीं लगता ,|
जो पैसे पर्यावरण को गन्दा करने में लगाया जा रहा है ,जो पैसे और शक्ति लोग अभी गन्दा जल को भगवान के पास ले जाने में लगा रहें है |उससे ये गन्दा जल फिर से गंगा जल बन सकता था ,कचरे का सफाई यंत्र लगाकर ,दुष्ट लोगों को पकडकर जो जान भुझ कर गंगा को गन्दा करते है अपने फायदे के लिए ,सियासी ताकत के लिए ,और शायद यही होती गंगा कि पूजा ,शिव के प्रति अर्पण
        और तब भगवान शिव के साथ गंगा मैया भी प्रसन्न होती ,
          तो आप ही बताइए कि जो चल रहा है वो आस्था है या कुछ और |बिना भावना कि आस्था नहीं हो सकती ,और बिना सोचे भावना नहीं आ सकती
       जिस गाजे बाजे के साथ पानी की  ढूलाई हो रही है | शायद उस गाजे बाजे  के साथ ,जोश से गंदे जल को गंगा में मिलने से रोकने का कार्यक्रम होता ,जागरूकता फैलाई जाती ,तब शायद आज भी गंगा में खड़े होने पर सारे रोग दूर हो जाते जैसा आज से कुछ १०० साल पहले हुआ करता था |लेकिन अब ऐसा नही है
      आस्था के आंधी से जो धूल उडती है वो लोगों को अंधा बना देती है |लोग ये भी समझ नहीं पाते कि गंगा जल वैसा नहीं रहा जैसा शिव पसंद करते है |केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण समिति के अनुसार हरिद्वार का पानी नहाने के लिए उपयुक्त नहीं है पिने कि बात तो बहुत दूर है  हरिद्वार के पानी में लगभग १०००० m p n /100ml
कालिफोर्म है ,जबकि नहाने के लिए ५०० mpn/100ml से ज्यादा कलिफोर्म वाला पानी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता |स्थिति कि गंभीरता इसी से लगाई जा सकती है ,लेकिन इसकी किसे परवाह है
   आस्था के शोर में गंगा कि कराह गुम सी हो जाती है |||       

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