Monday, 26 August 2013

नमन

इस  दुनिया में कभी कभी फरिस्ते भी जन्म लेते है ,जो औरों के लिए जीते है खुद के लिए नहीं | ऐसे लोग अमर है |
गरीबो की मसीहा रहीं मदर टेरेसा सेवा और मानवता की परिभाषा है |सिस्टर टेरेसा का जन्म २६ अगस्त  १९१० को  अल्बानिया में हुआ था
१८ वर्ष की उम्र में वो सिस्टर ऑफ लोरेंतो से जुड गई ,कुछ साल यूरोप में काम करने के बाद १९२९ में भारत आई |सबसे पहले दार्जलिंग पहुची ,वहाँ उन्होंने बंगला सिखा और स्कूल में पढाने लगी |
अकेलापन ,गरीबी,बार बार पड़ते अकाल और १९४६ के दंगो ने उन्हें झकझोर कर रख दिया |तब उन्हें लगा यह जन्म लोगों की सेवा के लिए है |फिर न  जाने कब सिस्टर टेरेसा मदर टेरेसा बन गयीं |
उन्होंने भारत की नागरिकता ली और पटना आकर मेडिकल ट्रेनिंग ली और फिर स्लम की और बढ़ चली |सबसे पहले उन्होंने कलकता के मोतिहिल में गरीबो के लिए स्कूल खोला |
गरीबी ,नग्नता ,बीमारी ,दुःख ,समाज की बेरुखी को देखते हुए १९४९ में उन्होंने कुछ सिस्टर की सहायता से "गरीबों में गरीब " की सेवा हेतु एक संता की स्थापना की ,१९५० में उन्हें वेटिकेन की तरफ से मिशनरी बनाने की अनुमति मिल गयी |फिर उन्होंने अपने मिशनरी का नाम मिशनरी ऑफ चैरिटी रखा |सुरुआत में इसमें केवल १३ सिस्टर थी  |
   १९५२ में उन्होंने एक खाली मंदिर में पहला सेव गृह की सुरुआत की जिसका नाम निर्मल ह्रदय रखा |
कुछ दिन बाद कुष्ट रोगियों के लिए सेवा गृह खोला गया जिसका नाम शांति नगर रखा गया |
इसी तरह मदर टेरेसा यहाँ के लोगों की सेवा ५० वर्षों तक  करती रही | मानवता की इस मिशाल के लिए उन्हें १९७९ में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
सृष्टि का नियम से कौन बचा है ,इस फ़रिश्ते ने ५ सितम्बर १९९७ को इस दुनिया को छोड़  दिया |
ऐसे आत्मा ,जज्बे  को सत् सत् नमन
आज उनके जन्मदिन पर उनको एक श्रधांजलि ||

Thursday, 15 August 2013

ऐ मेरे वतन के लोगों




ऐ मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा

पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली
क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी

थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के
जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं

थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
जय हिंद जय हिंद की सेना
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद.....

स्वतंत्रता दिवस मुबारक



ये बात हवावो को बताये रखना ,
रौशनी होगी चिराग को जलाये रखना ,
लहू देकर जिसकी हिफाजत हमने की ,
ऐसे तिरंगे को अपने दिल में बसाये रखना ||

स्वतंत्रता दिवस बहुत बहुत मुबारक हो ||

इस देश के लिए कुछ करने को मन करता है | |





देखों नया सबेरा
आज़ादी लेकर आयी है |
अपने साथ वो खुशियाँ
लेकर आयी है ||

अन्दर एक उमंग है |
बाहर एक उत्साह है ||
अपनों के लिए
कुछ करने की चाह है ||

इस तिरंगे में मै अपने
अरमानो को देखता हूँ |
इसमें देश के खेत और
खलिहानो को देखता हूँ ||

चंद्रयान पर तिरंगा देख
बहुत ही अच्छा लगता है ||
अब इस देश के लिए एक
मंगल यान बनाने का दिल करता है ||

नन्हे नन्हे झंडे
बचपन की याद दिलाते है |
फिर से झंडा लेकर
उछलने को मन करता है ||

कुछ भूखे बच्चे बिलख रहे,
उनके लिए कुछ करने को मन करता है |
उनके हाथों में भी
एक झंडा देने को मन करता है ||

सब है आजाद |
पर कुछ है बेबस |
इन मुरझाये हुए चेहरों पर
एक मुस्कान देखने को मन करता है ||

इन पहाडो में
अपने सिपाहियों को देखता हूँ |
इन खेतों में
अपने भगवान को देखता हूँ ||

इस सुन्दर वातावरण में
कुछ लोग जहर फैलाते है |
उन नापाक हाथों को
कुचलने का मन  करता है ||

अपनों के लिए
कुछ करने को मन करता है |
इस देश की सेवा में
मर मिटने को मन करता है ||

मुझे अब तिरंगे के छाव
में रहने को दिल करता है |
मुझे बड़े उत्साह से
आज़ादी मनाने का मन करता है




#नलिन पुष्कर 

Monday, 12 August 2013

अब इस प्रेम भरी दुनिया में ,जहां देखो वहाँ तन्हाई है ||

                                                   


अब इस प्रेम भरी दुनिया में ,
जहाँ देखो वहाँ तन्हाई है ||

हम पीछे रह गये |
वो आगे बढ़ गये |
अब तो वो इधर देखते भी नहीं ,
हाय इस कदर बेवफाई है ||

अब इस प्रेम भरी दुनिया में ,
जहाँ देखो वहाँ तन्हाई है ||

इस अकेले पेड़ को देखो ,
इस अकेले शेर से पूछो ,
क्यों इनके आँखों में ,
एक शून्यता छाई है |

अब इस प्रेम भरी दुनिया में ,
जहाँ देखो वहाँ तन्हाई है ||

कागज के पन्नों में ,
जिंदगी ढूढती ये दुनिया |
इन मासूमो के कंधो  पर किसने ,
इनसे भी भारी 
पन्नों का बोझ लदवाई है ||

अब इस प्रेम भरी दुनिया में ,
जहाँ देखो वहाँ तन्हाई है ||

Sunday, 11 August 2013

भारत हमको जान से प्यारा है |




भारत हमको जान से प्यारा है |
सबसे प्यारा गुलिस्तां हमारा है  ||

सदियों से भारत भूमि दुनियां की शान है |
भारत माँ के रक्षा में जीवन कुर्बान है  ||

हिन्दुस्तानी नाम हमारा है |
सबसे प्यारा देश हमारा है ||

जन्म भूमि है हमारी ,शान से कहेंगे हम |
सब है भाई भाई ,प्यार से रहेंगे हम ||


भारत हमको जान से प्यारा है |
सबसे प्यारा गुलिस्तां हमारा है ||








Saturday, 10 August 2013

हम भी कुछ बोलें | तू भी कुछ बोल ||

हुआ सवेरा,
अब तो दिमाग के दरवाजे खोल |
हम भी कुछ बोलें |
तू भी कुछ बोल |
अभी तक तुने चुप रहकर बिताया ,
दूसरे से अपने को नीचे पाया |
सहनशीलता बहादुरी नहीं ,
इसलिए तू अपने मुख खोल  |
मै भी कुछ बोलूं |
तू भी कुछ बोल ||
कुछ ने हमें जाहिल बनाये ,
हमारे पसीने से वे  मक्खन खाए  ,
जिस रात को हम भूखा  सोये  |
जिसने इस चमन को बर्बाद किया है ,
उसके लिए तू बन जा एक शोल |
अब तो अपने बाहें खोल ,
हम भी कुछ बोलें |
तू भी कुछ बोल ||
ऐ दोस्त
अब एक नया रास्ता बनाना है ,
चाँद से धरती पर एक सिढी लगाना है||
अब तो तू अपने आंखे खोल ,
मै भी कुछ बोलूं|
तू भी कुछ बोल ||


# नलिन पुष्कर

Sunday, 4 August 2013

छोटी सी आशा

दिल है छोटा सा
छोटी सी आशा  |
मस्ती भरे मन में
भोली सी आशा  |
चाँद तारों को छूने की आशा |
आसमानों में उड़ने की आशा |
जिंदगी में कुछ बनने की आशा |
अपनों लिए कुछ करने की आशा |
दिल ही छोटा सा
छोटी सी आशा |




Thursday, 1 August 2013

साधू कौन

 साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं ||
                                                      ;- कबीर 

क्या यह आस्था है ??

चाहे कुछ हो  जाये लोग नही समझेंगे कि आस्था मन से होती है ,शोर से नहीं ,दिखावे से नहीं
अभी हरिद्वार में कावर यात्रा चल रहा है ,हरिद्वार से जल लेकर जाने वाले कावरियों को देखकर नहीं लगता कि डेढ़ महीने पहले कितना बड़ा विध्वंस हुआ कितने लोग मरे ,और कितनो कि जिंदगी जीने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा
          गाजा बाजा ,डीजे ,नाच ,अंग्रेजी गीत ,साज  सज्जा आवाज इतना कि अगर किसी मृत आदमी को भी सडक  पर ला खङा किया जाये तो उसका भी दिल धड़कने लगे  | जहाँ इन्होने विश्राम किया सारा गन्दगी पोलिथिन फैलाते चले गए ,सडको पर पानी के ग्लास फेकते  जा रहे है |केले कि छिलके जहा खोजिये वही मिलेगा ,और कहते है हम पूजा करते है | उर्जा और पैसो का ऐसा बेहूदा प्रयोग देखकर आपको अपने और इन लोगो पर निश्चय ही रोना आ जायेगा |आपको अपने पर इसलिए कि आप इन्हें समझा न  सके  और  ये   कि कभी समझ न  सके |
      शायद जो पैसे धुआँ में उड़ रहे है ,जो पैसे आवाज बनकर लोगों को बहरा बना रहे है ,जो शक्ति यूँही लोग दौड़ कर नष्ट कर रहें है, उनकी जरुरत  उत्तराखंड को है ,यहाँ के लोगों को है ,पैसो कि जरुरत यहाँ के पेङो को है ,उस शक्ति कि जरुरत यहाँ के पहाड़ों को है  | पैसो कि जरुरत गंगा को है ,उन पैसो कि जरुरत उन संस्थाओ को है जो इन पहाड़ों पर सड़क बनाने पर अनुसन्धान करते है |पैसो कि जरुरत उनको है जो उड़न खटोला बनाकर लोगों को बचाते हैं |और पैसो कि जरुरत यहाँ के संस्थाओ को है जो बच्चो को जज्बाती बनाते है ,वैज्ञानिक बनाते है ,|
           मै तो भगवन से नहीं मिला लेकिन मान्यताओ से तो साफ प्रतीत होता है कि भगवान को प्रदुषण से नफरत है ,चाहे कोई भगवन क्यों ना हो ||

कलम आज उनकी जय बोल

कुछ ऐसी रचनाये है ,जो कभी कभी जोश  जगा देती है ,और राष्ट्रकवि  रामधारी सिंह दिनकर की कविताये तो और प्रेरित करती है , कुछ करने को कुछ पाने को ,लोगो के लिए जीने को ,लोगो  के लिए मरने को
देश के लिए कुछ करने को ,

हम अपने प्रेरणा श्रोत राष्ट्र कवि दिनकर एवं उनकी रचनाओ को नमन करते है |


कलम, आज उनकी जय बोल -रामधारी सिंह दिनकर

जला अस्थियां बारी-बारी,
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

What is success

"be not afraid of growing slowly;be afraid only of standing still"
I often think that what is success ,and every time i perceived that doing our work daily according to our aim is success
                                      
मेरे हिसाब से जिंदगी चलने का नाम है ,प्रेम और मुहब्बत से जिया गया जिंदगी एक स्वर्ग की जिंदगी है |
सबको साथ लेकर चलने में और मजा है ,अकेले चलने में वो मजा नही ,मुझे लगता है जिंदगी को फूल की तरह जीना चाहिए कोई भी आपको देखकर खुस हो ,और फूल की तरह आप भी मुस्कराये ,यही सफलता है |

 देश या राज्य को जितना सफलता नहीं है ,दिलो को जितना एक सफलता है |