Sunday, 22 June 2014

सुबह की हवा


सुबह की हवा
गुजरते हुए |
मचलते हुए |
कुछ गुनगुनाते हुए  |
सनसनाते हुए ,
सुबह की हवा कुछ कहती है ||

फूलो को छूकर ,
टहनियों को हिलाकर ,
पछियों से गले मिलकर ,
पथिको में उर्जा भरकर ,
सुबह कि हवा कुछ कहती है ||

ओस कि चादर ओढ़ कर
सोये घास को जगाकर ,
अलसाये कली  को सहलाकर ,
कभी झकझोर कर कभी हिलाकर
ऐसा लगता है ,
सुबह की हवा सबको जागने को कहती है ||
कुछ करने को कहती है ||



एक खिलखिलाहट को संजोये  हुए,
सूरज की  गर्मी में भी ,
नमी को पिरोये हुए ,
जैसे प्रेम बाँट रही हो ,
सुबह की हवा हमें बड़े होकर
भी बच्चा बनने को कहती है ||
हमें खुश रहने को कहती है ||

इसने कभी किसी को उड़ाया नहीं ,
इसने कभी किसी पर बल अजमाया नहीं ,
इसके पास ज्यादा बल भी नहीं ,
फिर भी इससे मिलने सुबह सुबह ,
इतने लोग घरों  से बाहर निकल आते है ||
इस तरह सुबह की हवा
लोगों के लिए जीने को कहती है ||

इसकी हर एक छुयन,
एक अजीब सी सकून देती है |
जैसे कोई छूकर हँसाना चाहता हो ||
गुदगुदाकर ,
खुद मुस्कुराकर ,
सुबह की  हवा  आपको भी
मुस्कुराने को कहती है |||


रचनाकार :---
नलिन पुष्कर

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