गुजरते हुए |
मचलते हुए |
कुछ गुनगुनाते हुए |
सनसनाते हुए ,
सुबह की हवा कुछ कहती है ||
फूलो को छूकर ,
टहनियों को हिलाकर ,
पछियों से गले मिलकर ,
पथिको में उर्जा भरकर ,
सुबह कि हवा कुछ कहती है ||
ओस कि चादर ओढ़ कर
सोये घास को जगाकर ,
अलसाये कली को सहलाकर ,
कभी झकझोर कर कभी हिलाकर
ऐसा लगता है ,
सुबह की हवा सबको जागने को
कहती है ||
कुछ करने को कहती है ||
एक खिलखिलाहट को संजोये हुए,
सूरज की गर्मी में भी ,
नमी को पिरोये हुए ,
जैसे प्रेम बाँट रही हो ,
सुबह की हवा हमें बड़े होकर
भी बच्चा बनने को कहती है
||
हमें खुश रहने को कहती है
||
इसने कभी किसी को उड़ाया
नहीं ,
इसने कभी किसी पर बल अजमाया
नहीं ,
इसके पास ज्यादा बल भी नहीं
,
फिर भी इससे मिलने सुबह
सुबह ,
इतने लोग घरों से बाहर निकल आते है ||
इस तरह सुबह की हवा
लोगों के लिए जीने को कहती
है ||
इसकी हर एक छुयन,
एक अजीब सी सकून देती है |
जैसे कोई छूकर हँसाना चाहता
हो ||
गुदगुदाकर ,
खुद मुस्कुराकर ,
सुबह की हवा
आपको भी
मुस्कुराने को कहती है |||
रचनाकार :---
नलिन पुष्कर